पदगलन या बकानी
पौधशाला व रोपार्इ की गर्इ फसल में रोगग्रस्त पौधे पीले, पतले व स्वस्थ पौधों की अपेक्षा लम्बे हो जाते हैं तथा जमीन की सतह से गलकर सूख जाते हैं। पौधों के तनों की नीचे की गांठों से जड़ों का निकलना व रूर्इ जैसी सफेद या गुलाबी रंग की फफूँद दिखार्इ देना इस रोग के अन्य लक्षण हैं।
रोकथाम/सावधानियां
• स्वस्थ बीज का प्रयोग करें। बीज उपचार करने से ही इसका बचाव है।
• बीज उपचार के लिए 10 लीटर पानी में 10 ग्राम कार्बेन्डाजिम (बाविस्टीन) या 10 ग्राम एमिसान या 2.5 ग्राम पोसामाईसिन या 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसार्इक्लिन को घोल लें और इस घोल में 10 किलोग्राम बीज को 24 घंटे तक भिगोयें । इसके बाद बीज को घोल से निकाल कर छाया में पक्के फर्स या बोरी पर ढेर के रूप में डाले व गीली बोरी से 24 से 36 घंटे तक ढक दें। समय समय पर पानी छिडक कर बीज को गीला रखें ताकि अंकुरण हो सके।
• धान की पनीरी को उखाड़ने से 7 दिन पहले कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से रेत में मिलाकर पनीरी में एक सार बिखेर दें। ध्यान रहे पनीरी में उथला पानी हो। यदि धान की पनीरी बोने से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम से उपचारित किया भी हो तो भी यह उपचार अवश्य करना चाहिए।
• धान की पनीरी खड़े पानी में उखाड़ें।
• रोगग्रस्त पौध की रोपार्इ न करें।
• रोगग्रस्त पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें।