मीली बग

मीली बग एकबहुभक्षी कीड़ा है जो पौधों के विभिन्न भागों विशेषकर कोंपलों से समूह में एकत्र होकर रस चूसते हैं तथा प्रकोपित भाग को सुखा कर ही दम लेते हैं। 

मीली बग ग्रसित पौधों पर प्राय: काली अथवा भूरी चींटियां काफी संख्या में चलती नज़र आती हैं। इस कीड़े की अधिक संख्या बढ़ने पर पौधों पर दूर से ही रूर्इ-सी नज़र आती है तथा नियंत्रण के अभाव में यह कीड़ा खेत में फैल कर पूरी फसल को सुखा सकता है।

खरीफ मौसम के अनेक पौधे एवं खरपतवार जैसे कांग्रेस घास, सांठी, भाखड़ी, जंगली भ्रूट, पुठकण्डा (ऊँगा), होर्सवीड, अश्वगंधा, पलपोटन, कंघी बूटी, गुड़हल आदि इसके पनपने में सहायक हैं। कपास के अलावा यह भिण्डी, बैंगन, ग्वार आदि को भी हानि पहुँचाता है।

सर्दियों में यह कीड़ा कपास की छट्टियों के ढेरों में पनाह लेता है व कांग्रेस घास,
अश्वगंधा व होर्स वीडपर जीवनयापन करता है। मार्च-अप्रैल में यह कपास के ठूंठों से हुए फुटावों पर पनपता है।

 

मीली बग

रोकथाम

       मीली बग के प्रभावकारी नियंत्रण के लिए खेतों के आस-पास खालों/नालों/रजबाहों के किनारे उगने वाले ऊपर बताए गए परपोषी पौधों को जला दें अथवा काट कर गहरा दबा दें। मार्च-अप्रैल में कपास के ठूंठों से हुए फुटाव (मोढी) खेत में पड़े छट्टियों के ढेरों के नीचे पड़े कचरे को नष्ट करें।

       कीटनाशक से रोकथाम: मिलीबग प्रकोप की आरम्भिक अवस्था (मई के अंत से जुलाई तक) में 3 मि.ली. प्रोफेनोफास 50र्इ.सी. या 1.5ग्राम थायोडीकार्ब 75 डब्लू. पी. या 4 मि.ली. क्विनलफास 25 र्इ.सी. प्रति लीटर पानी में घोलकर केवल ग्रसित आसपास के पौधों पर रोग के सारे  खेत पर फेलने पर पूरे खेत में दो से तीन छिड़काव करें।

       यदि बाद में फसल पर मिलिबग का अधिक प्रकोप हो तो इन कीटनाशकों का प्रयोग 5 से 6 दिन के अंतर पर पूरी फसल में फिर से  करें।