जीवाणुज अंगमारी या कोणदार धब्बों का रोग

• इस रोग के लक्षण जमीन से ऊपर पौधे के सभी भागों पर दिखाई देते हैं । इसके मुख्य लक्षण हैं टहनियों पर धब्बे,पत्तों पर कोनेदार धब्बे व टिण्डों पर भी धब्बे पाये जाते हैं। इस रोग के लक्षण पत्तों पर कोणदार जलसिक्त (पानीदार) धब्बों के रूप में नजर आते हैं। ये गहरे-भूरे होकर किनारों से लाल या जामुनी रंग के हो जाते हैं व कभी-कभी आपस में मिले हुए होते हैं व तनों पर लम्बे या अण्डाकार काले रंग के धब्बे बनते हैं। डोडियों पर गोल धब्बे जलसिक्त, चमकदार होकर गहरे हो जाते हैं। प्रकोप की अवस्था में कोणदार धब्बे शिराओं के पास सिमट जाते हैं और इस प्रकार शिरायें काली पड़ जाती हैं जिससे कि पत्ता सिकुड़ जाता है और पीला पड़ कर गिर जाता है।
• अनुकूल मौसम: कोणदार धब्बों का रोग दिन का औसत तापमान 25 से 31 डिग्री सेल्सियस तथा हवा में नमी 80 प्रतिशत से अधिक होने पर प्रकोप ज्यादा होता है परन्तु खुश्क व गर्म मौसम रोग को कम करने में सहायक है।
• रोकथाम :इस रोग की रोकथाम के लिए बीज उपचार करें | 5 ग्राम एमिसान + 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसार्इक्लिन + 1 ग्राम सक्सीनिक तेजाब को 10लीटर पानी के बनाये घोल में 5-6 कि.ग्रा. रोएंदार बीज का 6-8 घण्टे तक तथा 6-8 कि.ग्रा. बगेर रोएंदार बीज का केवल 2 घण्टे तक उपचार करें।
• बिजार्इ के 6सप्ताह बाद अथवा जून के अन्तिम या जुलार्इ के पहले सप्ताह में यदि इस रोग का प्रकोप हो तो प्लेण्टोमाइसिन (30-40 ग्राम प्रति एकड़)या स्ट्रैप्टोसाइक्लिन (6-8 ग्राम प्रति एकड़)व कॉपर आक्सीक्लोरार्इड (600-800 ग्राम प्रति एकड़)को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर 15-20 दिन के अन्तर पर लगभग 4 छिड़काव करें।