टिण्डा गलन

       कर्इ फफूंदियां,जीवाणु, कीड़े आदि मिलकर टिण्डों को गला देते हैं जिनका उपज पर सीधा प्रभाव पड़ता है। कुछ रोगाणु, जलसिक्त धब्बे बनाते हैं  जो बाद में काले हो जाते हैं,जिनका केन्द्र अन्दर को धंसा हुआ या नहीं भी होता है। रोगग्रस्त टिण्डों को विभिन्न फफूंदियां हानि पहुंचाती हैं जिनसे रेशे गन्दे, पीले और काले पड़ जाते हैं।

रोकथाम: टिण्डा गलन रोग पर नियन्त्रण के लिए सिफारिशशुदा सूण्डी नियन्त्रण वाली दवाईयों के साथ कॉपर आक्सीक्लोरार्इड (2 ग्राम प्रति लीटर पानी)या बाविस्टिन (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) को मिलाकर छिड़काव करें। इन फफूंदनाशक दवाइयों को पत्तों पर अच्छी तरह चिपके रहने के लिए दवा के 100 लीटर घोल में 10 ग्राम सैल्वेट 99 या 50 मि.ली. ट्राइटोन मिला लें।