जल प्रबंधन
· धान की फसल के वानस्पतिक वृद्धिकाल में पानी भरा रहना चाहिए।प्रति सप्ताह पानी का निकास करके ताजा पानी
· भर देना चाहिए।रोपार्इ के बाद जब पौधे ठीक प्रकार से जड़ पकड़ लें (रोपार्इ के 6से10 दिन बाद) तो पानी रोक लें ताकि पौधों की जड़ें विकसित होजायें। फिर पानी तब तक रोकें जब तक वानस्पतिक वृद्धि का समयपूरा हो। ऐसा करने से अनावश्यक कल्ले नहीं फूटेंगे।
· खाद डालने या निराई गुडाई करने के खेत से पानी निकाल दें । इन क्रियांओं के बाद खेतमें पानी लगाएं ।रोपार्इ से लेकर पकने तक कुल सिंचाइयां वर्षा पर निर्भर करती हैं।एक बार में 5-6 सैं. मी. से अधिक गहरा पानी न लगायें।सीमित सिंचार्इ की दशा में धान के खेत को बार-बार पानी देकर गीला रखें।
· खाद डालने या निरार्इ-गोड़ार्इ करने के लिए खेत में से पानी निकालदें। इन क्रियाओं के बाद खेत में पानी लगायें।सिंचाई का पानी अच्छीकिस्म का होना चाहिए तथा समय समय पर ट्यूबवेल के पानी की जांच करवा लेनी चाहियें।
· फसल की कटाई से एक सप्ताह पहले खेत से पानी निकाल दें ताकिफसल काटने और जमीन को आगामी फसल की बिजाई के लिए तेयार करने में आसानी हो।