फसल में सिंचाई
 पौधों की बढ़वार के समय ((पहले दो महीने तक) सिंचाई का अन्तर अधिक रखते हैं। जिस समय गांठें बन रही हों उस समय सिंचाई जल्दी-जल्दी करते हैं।
यदि जमीन अधिक रेतीली है तो उसमें सिंचाई दोमट की अपेक्षा अधिक करनी पड़ती है।
रबी की फसल में कुल 10-15 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है।
प्याज में उथली जड़ें होती हैं। इसलिए अनियमित सिंचाई करने से कंद के दो फाड़ होने की सम्भावना रहती है।
अधिक पानी देने से गर्दन मोेटी बनती है।
फसल को ढ़ंग से पकने के लिए खुदाई से लगभग 15 दिन पहले सिंचाई देना बन्द कर देना चाहिए। ऐसा करने से भण्डारण क्षमता बढ़ती है।

तैलीय पानी के साथ जिप्सम का प्रयोग

तैलीय पानी के एक मि.ली. तुल्यांक प्रति लीटर आर.एस.सी. को निरस्थीकरण करने के लिए जिप्सम 32 किलोग्राम (80% शुद्धता) प्रति सिंचाई, प्रति एकड़ तथा 8 टन गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति एकड़ डाली जाए तो प्याज व लहसुन की फसल पर तैलीय पानी का प्रभाव कम होता है और अच्छी पैदावार ली जा सकती है।