मोल्या रोग

लक्षण :

      रोगग्रस्त पौधे पीले व बौने रह जाते हैं। इनमें फुटाव बहुत कम होता है और बालियां छोटी रह जाती हैं। रोगी पौधों की जड़ें छोटी व झाड़ीनुमा हो जाती हैं जिसका सीधा असर फसल की पैदावार पर पड़ता है। जनवरी-फरवरी में छोटे-छोटे गोलाकार सफेद चमकते हुए मादा सूत्रकृमि जड़ों पर साफ दिखार्इ देते हैं जो इस रोग की खास पहचान हैं।

सावधानियां/रोकथाम :

    रोगग्रस्त क्षेत्र में मोल्या रोग रोधी किस्म बी एच 75 व बी एच 393 की बिजार्इ करें।

      मर्इऔर जून के महीनों में खेत की 10-15 दिन के अन्तराल पर 2-3 गहरी जुताइयां करें।कड़ी धूप व शुष्क मौसम के कारण सूत्रकृमि की संख्या काफी हद तक कम हो जाती है।

       सूत्रकृमि की संख्या अधिक और एक सामान होने पर 13 किलो ग्राम कार्बोफ्युरान (फ्यूराडान 3 जी ) दवाई प्रति एकड़ के हिसाब से बिजार्इ के समय देने वाली खादों में मिला कर पोरें व बिजार्इ करें।

  • एक या दो साल के लिए सरसों, तोरिया, चना, गाजर, धनिया , मेथी आदि का फसल चक्र अपनाएं