पत्ता मरोड़ अष्टपदी
पत्ता मरोड़ अष्टपदी लीची का एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण कीट है।
इसके प्रौढ़ हल्के-भूरे रंग के सूक्ष्मदर्शी होते हैं।
सफेद रंग के होते हैं।
यह प्रायः तेजी से बढ़ने वाले व वृक्षों के पत्तों को हानि पहुंचाते हैं।
इनका प्रकोप वृक्षों के निचले भाग से शुरू होकर ऊपर की ओर बढ़ता है। प्रौढ़ व शिशु दोनों पत्तों की निचली सतह से रस चूसते हैं जिससे पत्तों पर छोटे-सफेद धब्बे बन जाते हैं।
ये धब्बे धीरे-धीरे आपस में जुड़कर गहरे भूरे रंग की तह बना देते हैं। प्रकोपित पत्ते मुड़ जाते हैं और अन्त में गिर जाते हैं।
अप्रैल से जून के गर्म व शुष्क महीनों में इसका प्रकोप ज्यादा होता है। मानसून शुरू होने पर कम हो जाता है और फिर सितम्बर के महीने में शुरू हो जाता है।
सर्दियों में प्रकोप बहुत कम रहता है।
नियन्त्रण एवं सावधानियां
1.समय-समय पर अष्टपदी से ग्रसित पत्तों व टहनियों को तोड़ते रहें और जलाकर नष्ट कर दें।
2.नया फुटाव आने पर अथवा प्रकोप शुरू होने पर 500 मि.ली. डाईमेथोएट (रोगोर) 30 ई.सी. को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें।
3.फल पकने के समय से थोड़ा पहले 500 मि.ली. मैलाथियान (सायथियान) 50 ई.सी. को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें।
आवश्यकता पड़ने पर 10 दिन बाद छिड़काव दोहरायें।
नोट:
मैलाथियान दवाई के छिड़कने के एक सप्ताह तक फलों को न तोड़ें।