दीमक
यह कीट फलदार, छाया वाले व अन्य पेड़ों को भारी नुकसान पहुंचाता है।
इसका ज्यादा नुकसान पौध में या नये लगाए हुए पौधों में (जो नई व रेतीली जमीन में रोपे जाते हैं) होता है।
शुष्क व अर्द्धशुष्क जलवायु इसके लिए लाभकारी होती है।
ये कीट सूर्य की रोशनी पसन्द नहीं करते।
ये या तो जमीन में रहकर वृक्षों की जड़ों को खाकर तने को खोखला करते हुए ऊपर की ओर बढ़ते हैं अथवा पेड़ों की बाहरी सतह पर मिट्टी की सुरंग बनाकर इसके अन्दर रहकर छाल को खाते हैं।
इसके कमेरों द्वारा जड़ों, छाल या बीच की लकड़ी की क्षति होने से वृक्ष सूखकर मर जाते हैं।
दीमक से प्रकोपित वृक्ष तेज आंधी से गिर जाते हैं।
जीवित पौधों के साथ-साथ यह सूखी लकड़ी को भी नुकसान पहुंचाते हैं। सारा साल इनका प्रकोप बना रहता है लेकिन सर्दी व बरसात के समय यह प्रकोप कम हो जाता है।
नियन्त्रण एवं सावधानियां
1. यांत्रिक विधि
खेत को साफ-सुथरा रखें।
कोई भी चीज, जैसे ठूंठ, गलीसड़ी, सूखी लकड़ी इत्यादि न रहने दें, क्योंकि ये दीमक के प्रकोप को बढ़ावा देती हैं।
2. वृक्षों के आसपास गहरी जुताई करें व पानी दें जिससे दीमक का प्रकोप कम हो जाये।
3. गोबर की हरी व कच्ची खाद प्रयोग में न लाएं क्योंकि ये दीमक को बढ़ावा देती हैं।
4. जहां तक हो सके रानी दीमक को नष्ट करें।
रासायनिक विधि
पौधे लगाने से पहले गड्ढे में 50 मि.ली. क्लोरपाइरीफाॅस 20 ई.सी. 5 ली. पानी में मिलाकर प्रति पौधा डालें।
दवाई का घोल डालने से पहले प्रत्येक गढ़े में 2-3 बाल्टी पानी डाल दें।नए पौधे लगाने के बाद तथा लगे हुए पौधों में 1 लीटर क्लोरपाइरीफाॅस 20 ई.सी. प्रति एकड़ सिंचाई करते समय डालें।