कनसुआ की बिजाई के समय रोकथाम

कनसुआ की बिजाई के समय रोकथाम

ü  बिजार्इ के समय खुड्डों में पोरियों के ऊपर प्रति एकड़ 2.5 लीटर क्लोरपाइरीफॉस (डरमेट/डर्सबान/ क्लासिक/राडार/ लीथल) 20 र्इ.सी. या 2.5 लीटर गामा बी. एच. सी. (लिन्डेन/केनोडेन) 20 र्इ.सी. या 600 मि.ली.फिप्रोनिल(रीजेन्ट) 5 एस. सी. (रेतीली मिट्टी के लिए 700 मि.ली.)का 600- 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर फव्वारे से छिड़कें

अथवा

ü  150 मि.ली. र्इमीडाक्लोप्रिड (कान्फीडोर 200 एस. एल.या इमिडागोल्ड 200 एस. एल.)को 250-300 लीटर पानी में मिलाकर खुड्डों में पोरियों के ऊपर नैपसैक पम्प से छिड़काव करें

अथवा

ü  8 कि. ग्रा. डर्सबान 10 जी. (दानेदार) या 8 कि.ग्रा. केनोडेन 6 जी.या 10 कि.ग्रा. लिन्डेन 1.3 डी. पी.(रेतीली मिट्टी के लिए 15 कि.ग्रा.) या 10 कि.ग्रा. फिप्रोनिल (रीजेन्ट) 0.3 जी.(रेतीली मिट्टी के लिए 12 कि.ग्रा.) या 7.5 कि.ग्रा. सेविडोल 4 : 4जी प्रति एकड़ का खुड्डों में भुरकाव करें।

अथवा

ü  जहां दीमक की समस्या गंभीर नहीं है वहां 1.5 लीटर अमृतगार्ड 0.03 प्रतिशत को 600 लीटर पानी में मिलाकर खुड्डों में पड़े बीज पर फव्वारे से छिड़कें। उपचार के तुरन्त बाद सुहागा लगाकर खुड्डों को बंद कर दें ताकि कीटनाशक का असर कम होने पाये।

बिजाई के बाद रोकथाम (अप्रैल से जून में रोकथाम)

ü  ऊपरलिखित कीटनाशकों में से कोई एक कीटनाशक को सिंचाई के साथ फसल में डालें |

ü  मई जून के महीने में फसल को दस दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें |

नोट: उपरलिखित कीट नाशकों से उपचार से दीमक जड़ बेधक (प्रारम्भिक अवस्था) का भी उपचार हो जाता है |