जीवाणुज पत्ता अंगमारी (बैक्टीरियल लीफब्लार्इट)

जीवाणुज पत्ता अंगमारी के लक्षण की दो मुख्य अवस्थायें हैं। अधिक हानिकारक अवस्था को क्रैसक कहते हैं। यह अवस्था हरियाणा में बहुत कम देखने को मिलती है।

  रोपार्इ के 1 से 6 सप्ताह के बीच रोगग्रस्त पौधों की शुरू में गौभ सूखने लगती है तथा पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं। बाद में रोगी पौधे मर जाते हैं तथा इनके तनों को काटकर दबाने से पीला-सफेद चिपचिपा पदार्थ निकलता है।

  पत्तियों के एक या दोनों किनारों से या कभी-कभी मध्य सिरा के साथ ऊपर से नीचे की ओर पीले सफेद रंग की लहरदार धारियां बनती हैं। बाद में पत्ते सूख जाते हैं।

  नमी वाले मौसम में पत्तियों पर जीवाणुओं की बूंदें -सी नजर आती हैं। ये बूंदें सूखने पर सख्त हो जाती हैं और बाद में पीली हो जाती हैं या इनकी सफेद पपड़ी-सी बन जाती है।

रोकथाम :

  प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें ।

  बोने से पहले बीज का उपचार करें। 

  • अगेती व घिनकी रोपार्इ न करें तथा नत्रजन खाद का अधिक प्रयोग नकरें। खाद का प्रयोग संतुलित मात्रा में करें।

  रोगग्रस्त खेत का पानी रोगरहित खेत में न जाने दें।

  रोगरोधी/सहनशील किस्में जैसाकि एच के आर 120 और आर्इ आर 64 की रोपार्इ करें।