छाल की सुंडी

अमरूद के साथ-साथ यह कीट प्रायः सभी फलदार, छायादार व अन्य पेड़ों को नुकसान पहुंचाता है। 
यह कीट प्रायः खाई नहीं देता परन्तु जहां पर टहनियां अलग होती हैं वहां 
पर इसका मल व लकड़ी का बुरादा जाले के रूप में खाई देते हैं। 
दिन के समय यह कीट की सूंडी तने के अन्दर सुरंग बनाती हैं और रात को छेद से बाहर निकलकर जाले के नीचे रहकर छाल को खाती हैं एवं खुराक नली को खाकर नष्ट कर देती हैं जिससे पौधों के दूसरे भागों में पोषक तत्व नहीं पहुंच पाते हैं। 
बहुत तेज हवा चलने पर, प्रकोपित टहनियां एवं तने टूट कर गिर जाते हैं। जिन बागों की देखभाल नहीं होती उनमें पुराने वृक्षों पर इसका आक्रमण अधिक होता है। 
एक वर्ष में इस कीट की एक ही पीढ़ी होती है जो जून-जुलाई से शुरू होती है।

नियत्रण एवं सावधानियां 

इस कीट के नियन्त्रण के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम अपनाएं।
कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग, जाले हटाने के बाद ही करें।
1.सितम्बर-अक्तूबर 

10 मि.ली. मोनोक्रोटोफास (नुवाक्रान) 36 डब्ल्यू.एस.सी. या 10 मि.ली. मिथाइल पैराथियान (मैटासिड) 50 ई.सी. को 10 लीटर पानी में मिलाकर, सुराखों के चारों ओर की छाल पर लगाएं।

2.फरवरी-मार्च

 रूई के फोहों को दवाई के घोल में डुबोकर किसी धातु की तार की सहायता से कीड़ों के सुराख के अन्दर डाल दें एवं सुराख को गीली मिट्टी से ढक दें।
घोल बनाने के लिए 40 ग्राम कार्बेरिल (सेविन) 50 घु.पा.
या 10 मि.ली. फैनिट्रोथियान (फोलिथियान/सुमिथियान) 50 ई.सी. को 10 लीटर पानी में मिला दें। 10% मिट्टी के तेल का इमल्शन (एक लीटर मिट्टी का तेल + 100 ग्राम साबुन + 9 लीटर पानी) भी लगा सकते हैं।अथवा
कीड़े के प्रत्येक सुराख में निम्नलिखित दवाइयों में से किसी एक का पानी में बनाया गया 5 मि.ली. घोल डाल दें।
इसके लिए 2 मि.ली. डाईक्लोरवास (नुवान) 76 ई.सी. या
5 मि.ली. मिथाइल पैराथियान (मैटासिड) 50 ई.सी. को 10 लीटर पानी में मिलाएं तथा इसके बाद सुराखों को मिट्टी से बन्द कर दें।

नोट:

1.आसपास के सभी वृक्षों के सुराखों में भी इन दवाइयों का प्रयोग करें।2.बाग को साफ-सुथरा रखें व निर्धारित संख्या से ज्यादा पेड़ न लगाएं।