मोल्या

लक्षण :

 रोगग्रस्त पौधे पीले बौने रह जाते हैं। इनमें फुटाव बहुत कम होता है और बालियां छोटी रह जाती हैं। रोगी पौधों की जड़ें छोटी झाड़ीनुमा हो जाती हैं जिसका सीधा असर फसल की पैदावार पर पड़ता है। जनवरी-फरवरी में छोटे-छोटे गोलाकार सफेद चमकते हुए मादा सूत्रकृमि जड़ों पर साफ दिखार्इ देते हैं जो इस रोग की खास पहचान हैं। 

हरियाणा राज्य में यह रोग सिरसा, हिसार, फतेहाबाद, भिवानी, महेन्द्रगढ़, झज्जर, रिवाड़ी, गुड़गाँव, फरीदाबाद मेवात जिलों में गेहूँ तथा जौ दोनों फसलों में पाया जाता है।

       सावधानियां/रोकथाम  :

      रोगग्रस्त क्षेत्र में गेहूं की मोल्या रोग रोधी किस्म राज एम आर-1 की बिजार्इ करें।

     एक या दो साल के लिए सरसों, तोरिया, चना, गाजर, धनिया, मेथी और जौ की अवरोधी किस्में बी एच 75, बी एच 393 को गेहूँ के स्थान पर बीजें।

       मर्इ और जून के महीनों में खेत की 10-15 दिन के अन्तराल पर 2-3 गहरी जुताइयां करें। कड़ी धूप शुष्क मौसम के कारण सूत्रकृमि की संख्या काफी हद तक कम हो जाती है।

      रोगग्रस्त खेतों में गेहूँ की अगेती बिजार्इ मध्य-नवम्बर तक पूरी कर लें।

    सूत्रकृमि की संख्या अधिक एक समान हो तो कार्बोफ्यूरान (फ्यूराडान- 3 जी) 13 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से बिजार्इ के समय देने वाली खादों में मिला कर पोरें बिजार्इ करें।

      एजोटोबैक्टर एच. टी. 54 टीके की एक शीशी (50 मि.ली.)प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें। इस बीज को छाया में सुखा कर बोयें।