अष्टपदी

अष्टपदी   
इस माईट के शिशु एवं प्रौढ़ पत्तों की निचली सतह से रस चूसते हैं।
ग्रसित पत्तों पर छोटे-छोटे सफेद धब्बे बन जाते हैं।
यह माईट पत्तों पर जाला बना देती है।
अधिक प्रकोप होने पर लाल माईट फलों व पत्तों की नोक पर इकट्ठी हो जाती हैं।

रोकथाम 
लाल माईट (अष्टपदी) की रोकथाम के लिए प्रेम्पट 20 ई.सी. नामक दवा का 300 मि.ली. प्रति एकड़ के दो छिड़काव 10 दिन के अंतर पर करें। आवश्यकता पड़ने पर इसे फिर दोहराएं।

चित्तीदार तना व फलबेधक सूण्डी

चित्तीदार तना व फलबेधक सूण्डी
यह बेलनाकार सूण्डी है।
इसके शरीर पर हल्के-पीले संतरी, भूरे व काले धब्बे होते हैं।
छोटी फसल में सूण्डियां कोंपलों में छेद करके अन्दर पनपती रहती हैं जिससे कोंपलें मुरझाकर नीचे लटककर सूख जाती हैं। बाद में सूण्डियां कलियों, फूलों तथा फलों को नुकसान करती हैं।
ग्रसित फल टेढ़ेे व काने हो जाते हैं।
इसका प्रकोप जून से अक्तूबर तक अधिक मिलता है। 

रोकथाम
फल शुरु होने पर 400-500 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. या 400-500 ग्राम कार्बेरिल 50 घु.पा. या 75-80 मि.ली. स्पाईनोसैड 45 एस.सी. को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
इसे 15 दिन के अंतर पर तीन बार दोहराएं।

बीज के लिए लगाई गई भिण्डी की फसल में इस कीट के उपचार के 
लिए 55-60 ग्राम प्रोक्लेम 5 जी. (एमामैक्टिन) नामक दानेदार दवा को 200 लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर 3 से 4 बार दोहराएं।