चुरडा

चूरड़ा 

इस कीट के पीले, भूरे बेलनाकार शिशु व प्रौढ़ पत्तों से रस चूसते हैं।
ग्रसित पत्ते पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं तथा बाद में पत्ते मुड़ जाते हैं।
अधिक प्रकोप होने पर पत्ते चोटी से चांदीनुमा (सिल्वरी- टापे) होकर सूख जाते हैं।
फूल उगने के समय इस कीट के प्रकोप से बीज की पैदावार पर अधिक असर पड़ता है।
कीड़े का आक्रमण फरवरी से मई तक रहता है।

रोकथाम 

निम्नलिखित क व ख भाग में से बारी- बारी से किसी एक कीटनाशक को 200-250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार छिड़काव 10-15 दिन के अन्तर पर दोहरायें।
क)(1)75 मि.ली. फैनवैलरेट 20 ई.सी।
        (2)175 मि.ली. डैल्टामेेथ्रिन2.8 ई.सी.। 
        (3)60 मि.ली. साइपरमेथ्रिन 25 ई.सी./150 मि.ली. साइपरमेथ्रिन 10 ई.सी।
(ख)(1)300 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी।

प्याज एवं लहसुन में चुरड़ा कीट (थ्रिप्स) की रोकथाम के लिए लहसुन का तेल 150 मि.ली. तथा इतनी ही मात्रा में टी पोल को 120 से 160 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़, 3 से 4 छिड़काव 10 दिन के अन्तर पर करें।

नोट :
1.एक ही कीटनाशक का बार-बार प्रयोग न करें। आवश्यकतानुसार बारी-बारी से ‘क’ और ‘ख’ में दी गई कीटनाशकों को छिड़कें।
2.
प्रायः छिड़काव की जरूरत मार्च-अप्रैल में पड़ती है।
3.
छिड़काव के कम से कम 15 दिन बाद ही प्याज प्रयोग में लायें।

4.
किसी चिपकने वाले पदार्थ सैलवेट-99, 10 ग्राम या ट्रिटान 50 मि.ली. प्रति 100 लीटर घोल के साथ मिलाएं जिससे दवा पत्तियों पर चिपक जाए।